मौलिक विज्ञान

सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेस-सीएसआईआर-आईएचबीटी पौधों की मेटाबोलिक  इंजीनियरिंग में उल्लेखनीय योगदान कर रहा है। उच्‍च तुंगता क्षेत्र में कार्य करते हुए, वैज्ञानिकों के गहन पयर्वेक्षण से पोटेंटिला  Potentilla atrosanguinea से सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेस की खोज हुई। उल्‍लेखनीय है कि यह एंजाइम आटोक्‍लेविंग के बाद भी अपनी गतिविधि को बरकरार रखे हुए है और शून्‍य से  > 55C तापमान की सीमा के भीतर कार्य कर सकते हैं। सॉड जीन को क्लोन किया गया है। इसके अलावा, यह देखा गया है कि सॉड जीन युक्‍त ट्रांसजेनिक पौधों मॉडल नियंत्रण परिस्थितियों के पौधों की तुलना में लवण तनाव में भी अधिक कुशलता से बने रहने में सक्षम है। जैव सूचना विज्ञान उपकरण उपयोग करते हुए सॉड की संरचना को एक अकेले अमीनो एसिड के उत्परिवर्तन से इंजीनियरड किया था और परिणामस्‍वरूप एंजाइम की थर्मोस्‍टेबिलिटी  में दोगुणा वृद्धि हुई। यह एंजाइम प्रोटियोलिसिस के लिए प्रतिरोधी है। माइक्रोबियल माध्‍यम का उपयोग कर बायोरिएक्टर में थर्मोस्‍टेबल सॉड के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए प्रोटोकॉल को मानकीकृत किया गया है।

उच्चं तुंगता वाले क्षेत्रों के पौधों में नाइट्रोजन उपयोग करने के लिए संयोजित एक नवीन कार्बन सिक्वेजस्ट रिंग पाथवे को जाना गया जो कि  बेहतर कार्बन और नाइट्रोजन सिक्वेटरिंग/पृथक करने के लिए ट्रांसजेनिक पौधों तैयार करने का आधार तैयार करेगा।

व्यवसायिक दृष्टि  से महत्वपूर्ण औषधीय पौधों के सेकेंडरी मेटाबोलाइटस पाथवे का अध्ययन एक केन्द्रित कार्यक्षेत्र है। अभी तक संस्थाए ने  कैमेलिया सिनेसिस में केटेकिन, स्‍टीविया में स्टीवियॉल, अर्नेविया इकोरमा में सिकोनिन, पिक्रोराइजा से पिक्रोसाइड और केटेरेन्थडस से सिकोनेनेनिन और विनडोलिन  में युक्‍त सभी जीन की पहचान कर ली है।

जर्मप्लाज्म लक्षण वर्णन - संस्थान ने चाय जर्मप्लाज्म के डीएनए फिंगरप्रिंटिंग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 6 सहयोगी संस्थानों (डीयू, आईएचबीटी, टेरी, टीआरए, उपासी, और बोस संस्थान) में भारतीय चाय क्लोन का प्रतिनिधित्व 1763 accessions का सात AFLP प्राइमर संयोजन का उपयोग करके लक्षणचित्रण किया गया। संस्थान ने मोरफो‍लोजिकल रूपात्मक (वनस्पति, पुष्प और बीज लक्षण) और जैव रासायनिक मानकों के साथ भारतीय चाय जर्मप्लाज्म के एक चाय डिस्क्रिपटर वर्णनकर्ता डेटाबेस तैयार किया है। चाय के अतिरिक्त, गुलाब, बांस और एकोरस कैलमेस का डीएनए फिंगरप्रिंटिंग भी  किया गया है। आलू में जीनोम वाइड का सफलतापूर्वक विश्लेषण किया और 136 प्रोटीन की एन्कोडिंग के लिए जिम्मेदार 110 जीनों StNAC की पहचान की। इस अध्ययन से उनके कार्यात्मक लक्षण वर्णन और आलू के सुधार में उपयोग के लिए कार्ययोजना प्रदान किया जाएगी।

उद्योगों के लिए प्रौद्योगिकी

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए संस्थान मौलिक ज्ञान को प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करने पर ध्यान दे रहा है। कई प्रौद्योगिकियों को भारतीय उद्योग के लिए स्थानांतरित कर दिया गया है और कई पर बातचीत चल रही है।

थर्मास्टेबल एंजाइम - बायोरिएक्टर में माइक्रोबियल माध्यम से  थर्मास्टेबल एंजाइम के उत्पादन के लिए एक प्रक्रिया उचित मूल्य पर एक उद्योग के लिए स्थानांतरित की गई।

प्राकृतिक शून्य कैलोरी स्वीटनर - शून्य कैलोरी मिठास के विकल्प की काफी मांग है, और स्टीवियॉल-ग्लाइकोसाइड ऐसा ही एक मूल्यवान प्राकृतिक उत्पाद है जो मधुमेह रोग से पीड़ित लोगों द्वारा प्रयोग किया जा सकता है। स्टीविया से स्टीवियॉल-ग्लाइकोसाइड के उत्पादन के लिए एक जल आधारित सस्ती प्रभावी प्रौद्योगिकी को विकसित किया गया है।

चाय से प्राप्त पॉलीफिनोल में उच्च मूल्यवान न्यूट्रास्यू्टिक्ल होते हैं। इनमें कई स्वास्थ्य लाभकारी गुणों का पता चला है। संस्थान ने हरित पद्धति का उपयोग करके चाय के पौधे के कम उपयोगी भागों से उच्च गुणवत्ता पॉलीफिनोल की निकासी के लिए एक विधि/प्रोटोकॉल को मानकीकृत किया है। पॉलीफिनोल पानी में घुलनशील होते हैं और इनका उपयोग एंटीऑक्सीडेंट, खाद्य रंग, खाद्य संरक्षक/प्रिजरवेटिव के रूप में और सूक्ष्म जीवरोधी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। ठंडे पेय के रूप में चाय आधारित पेय और चाय आधारित वाइन तैयार करने के लिए प्रोसेस/विधि को विकसित किया गया है। दोनों उत्पाद एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हैं।

खाद्य और न्यूरट्रास्यूटिक्ल : सकारात्मक स्वास्थ्य लाभ के साथ खाद्य उत्पादों की श्रृंखला विकसित की है। इसमें बांस कैंडीज, नूडल्स, पापड़, बकबीट न्यूट्रीवार, आहारीय फाइबर, सेब खली आदि प्रमुख हैं।

हर्बोस्टिल लघु आसवन इकाई HERBOSTILL™

छोटे व मध्यम किसानों  की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संस्थान ने एक एक लघु आसवन इकाई को डिज़ाइन किया है। 5-25 किलोग्राम सामग्री को सगंध तेल और हाइड्रोसोल के प्रक्रमित किया जा सकता है, इसे गेस स्टोव या पारम्परिक भट्ठी पर उपयोग किया जा सकता है।

लघु लेमिनार फ्लो STERIFLOW™

टिशु कल्चर के कार्य में प्रयुक्तय होने वाले लेमिनार फ्लो प्राय: भारी भरकम और मंहगे होते है, लेकिन  संस्थान ने  एक लघु लेमिनार फ्लो का डिजाइन तैयार किया है। कालेज और स्कूलों में प्रदर्शन तथा कुटीर उद्यो‍गों में टिशु कल्चर को लोकप्रिय बनाने के लिए इसका व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जा सकता है।

रूटिंग वेसल - व्यवहार में यह देखा गया है कि टिशू कल्चर पौधों की जड़ मुश्किल से निकलती  हैं, इसलिए  कम समय में  कम लागत से सूक्ष्माप्रवर्धित पौधों की कुशल जड़ के लिए रूटिंग वेसल को डिजाइन किया गया था।

यह डिवाइस जेल के हस्तांरण और एक जगह से दूसरे स्थान पर ले जाने के समय इसे सुरक्षित बनाए रखता है। इसका उपयोग जैवप्रौद्योगिकी, आण्विक जीवविज्ञान प्रयोगशालाओं, खाद्य एवं फार्मा उद्योगों में किया जा सकता है।

संस्थान ने कई सरकारी, निजी फर्मों को टिशू कल्चर इकाइयों की स्थापना के लिए परामर्श सेवाएं और तकनीकी सहायता प्रदान की है। चाय संस्थान की प्रमुख फसलों में से एक है और संस्थान अपनी स्थापना से ही इस क्षेत्र से अच्छी गुणवत्ता चाय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है। संस्थान द्वारा चाय रसायनिक प्रोफ़ाइल पर तैयार तकनीकी जानकारी से हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार को  कांगड़ा चाय के लिए भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्राप्तद करने में सहायता मिली। क्षेत्र के चाय उत्पादकों के लिए नियमित रूप से परामर्श सेवाएं प्रदान की जाती हैं। अपनी सशक्त परामर्श सेवाओं के माध्यम से कांगड़ा क्षेत्र के उजाड़ और जीर्ण चाय बागानों के जीर्णोद्वार का श्रेय संस्थान को जाता है। इसके अतिरिक्त, संस्थान ने हिमाचल प्रदेश के गैर परंपरागत क्षेत्रों में चाय बागानों बढ़ावा दिया गया है। चाय बागानों में श्रमिकों की कमी की समस्या से निपटने के लिए तुड़ाई मशीन को विकसित किया और इसका चाय बागानों में प्रदर्शन किया। क्षेत्र में व्यापक अनुसंधान और विकास से चाय विदरिंग की नई अवधारणा से चाय की विदरिंग का समय 18 से 6 घंटे हो गया। इस अवधारणा के आधार पर चाय विदरिंग मशीन को डिज़ाइन किया गया तथा इस ‍  प्रौद्योगिकी को मै. मेस्को इक्विपमेंट प्रा. लि., कोलकाता को हस्तांतरित कर दिया गया है। चाय उद्योग के परिदृश्य में सुधार करने के लिए, संस्थान ने चाय उत्पादों के  विविधीकरण और चाय आधारित पेय और टी वाइन को विकसित किया। यह उत्पाद एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हैं और इनके सकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव है। केटेकिन से थियाफ्लेविन बनाने और चाय की सुगंध के केप्सूल बनाने की प्रौद्योगिकी को विकसित किया गया है।

रोगमुक्‍त इंडेक्‍स रोपण सामग्री - पुष्‍प खेती उद्योग के लिए रोगमुक्‍त इंडेक्‍स रोपण सामग्री बहुत महत्वपूर्ण होती है। पुष्‍प खेती व्यापार को प्रभावित करने वाले कई रोगज़नक़ों में से विषाणु रोग हानिकारक हैं। विषाणु रोगों की पहचान और नियंत्रित करना कठिन हो जाता है और इस तरह बहुत से विदेशी बाजारों में भारतीय फूल का निर्यात सीमित हो जाता है। भारतीय पुष्‍प खेती उद्योग की आवश्‍यकताओं का आकलन करके संस्‍थान ने जैमिनी और कोलिमों समूहों के अत्यधिक संवेदनशील विषाणुओं के लिए नैदानिक किट को विकसित किया है। ये किट पौधों में वास्‍तविक तौर पर विषाणु के लक्षण दिखाई देने के प्रारंभिक चरण में ही विषाणु का पता लगाने के लिए सक्षम है।

विषाणु मुक्‍त सेब रूटस्‍टॉक - सेब के विषाणु मुक्‍त रूटस्‍टॉक तैयार करने की विधि को विकसित कर लिया गया है। व्‍यापक पैमाने पर गुणन और उत्‍पादको को वितरण के लिए इस प्रौद्योगिकी को कई उद्योगों को स्थानांतरित कर दिया गया है।

जैव उवर्रक - पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने के गुणों से युक्‍त रोगाणुओं के समूहों से युक्‍त एक संघ को विकसित किया गया है। इसके प्रयोग से रासायनिक खाद की आवश्‍यकता में काफी हद़ तक कमी आई है।

समाज के लिए प्रौद्योगिकी

एक सार्वजनिक वित्त पोषित संगठन के रूप में सामाजिक दायित्व  के अन्तर्गत  संस्थान किसानों के लिए प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों को विकसित किया है। औषधीय और सगंध पौधों, आभूषक और उच्च मूल्यवान फसलों की कृषि प्रौद्योगिकी किसानों और तकनीकी-उद्यमियों को हस्तांतरित कर दी गई है।

संस्थान ने  सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्‍वविद्यालय, पालमपुर के सहयोग से प्रदेश के चम्बा जिले के सुलूणी में लैवेंडर खेती प्रारम्भ की। संस्थान ने रोपण सामग्री प्रदान की, तकनीकी सहयोग और फसल के प्रसंस्करण के लिए आसवन इकाइयों को स्थापित किया  है। इस संयुक्त प्रयास के परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र के किसानों अब उच्च गुणवत्तायुक्त लैवेंडर तेल का उत्पादन कर रहे हैं। संस्थान ने हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में जंगली गेंदे की व्यावसायिक खेती को लोकप्रिय बनाया है। तेल के आसवन के लिए एक आसवन इकाई भी एक केंद्रीय सुविधा के रूप में वहां पर स्थापित की गई है। इस फसल से किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है। अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के परिणामस्वरूप हिमगोल्ड 'HIMGOLD' नामक एक किस्म को विकसित करके विमोचित भी किया गया। सीएसआईआर-800 कार्यक्रम के तहत संस्थान एक ट्रक आधारित एक मोबाइल आसवन इकाई तैयार की है।

आईएचबीटी ने देश में स्टीविया की खेती को लोकप्रिय बनाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। संस्थान में एक पौधशाला को स्थापित किया गया था और गहन अनुसंधान के बाद स्टीविया की व्यावसायिक खेती के लिए एक कृषि प्रौद्योगिकी पैकेज को विकसित किया गया। पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि राज्‍यों को व्‍यापक पैमाने पर रोपण सामग्री आपूर्ति की और सफल फसल के लिए तकनीकी ज्ञान किसानों को प्रदान किया गया।  गहन प्रजनन प्रयोगों से स्टीविया की एक नई किस्म 'हिम स्टीविया' को विकसित करने में सफलता मिली इस किस्‍म में रिवॉडियोसाइड की उच्च मात्रा है।

वर्षों से पौधों के गृहीकरण के सफल प्रयास से संस्थान ने वे‍लेरियाना जटामांसी से हिमबाला, करकुमा एरोमेटिका से हिम हल्दी और हिडिचियम स्पाइकेटम से हिमकचरी जैसे कई महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की नई किस्मों का विमोचन किया। इन फसलों ने  संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरू कर दिया है। संस्थान ने लोकप्रिय जीवाश्म के रूप में जाने वाले एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधीय पौधे 'जिंकगो बाइलोबा' के वहु प्रवर्धन तकनीक को मानकीकृत किया है। इन-विवो संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर रोपण सामग्री की आपूर्ति  वन विभाग को की गई है।

फूलों की खेती

हिमाचल प्रदेश की कृषि जलवायु फमलों की खेती के लिए अत्‍याधिक उपयुक्त है। आईएचबीटी ने लोकप्रिय आभूषक/सजावटी फूलों की कृषि प्रौद्यागिकी को मानकीकृत करके एलस्‍ट्रोमेरिया, बर्ड ऑफ पैराडाइज़, ग्लेडियोलस, कारनेशन, लिलियम, गुलदाउदी, रजनीगंधा गुलाब आदि  पुष्‍प फसलों को  क्षेत्र में पहली बार लगाना प्रारम्‍भ किया और रोपण सामग्री किसानों के लिए प्रदान की।  इसके अतिरिक्‍त संस्‍थान ने पहली बार लाहौल क्षेत्र में लिलियम की  खेती की शुरुआत की। पिछले कुछ वर्षों में निरंतर अनुसंधान और विकास से आकर्षक रंगों और अधिक समय तक तरोताजा रहने वाले जरबेरा की नई किस्‍मों, अद्वितीय रंग युक्‍त सजावटी गुलाब, कांटारहित गुलाब,आकर्षक पत्ते और रंग युक्‍त ग्लेडियोलस के दस किस्मों जिनका पेटेंट कराया गया है,  को विकसित किया गया है। संस्थान द्वारा किए गए कार्य से शीत ऋतु में  सक्रिय गुलाब के चार नए रूटस्‍टॉक की पहचान हुई। अनूठे रंग और आकृति के साथ गुलाब और जरबेरा की नई किस्मों तैयार करने के लिए अनुसंधान कार्य चल रहा है। रोग मुक्त उच्च गुणवत्तायुक्‍त रोपण सामग्री नियमित रूप से उचित मूल्य पर किसानों और उद्यमियों को प्रदान की जाती है। किसानों के लाभ के लिए कर्तित पुष्‍प  उत्पादन तकनीक के क्षेत्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

बांस

हाल के वर्षों में, बांस अपने छोटे आवर्तन चक्र, तेजी से विकसित और उत्तरोत्तर एक स्थायी आधार पर काटे जाने की संभावना के कारण सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण हो गए हैं। संस्थान ने बैंबुसा न्युटान्स, डेंड्रोकेलामस हेमिलटोनाई, डी. स्टीक्टेरस, डी. एस्पर आदि कई उच्च मूल्यवान बांस किस्मों के लिए सूक्ष्म एवं स्थू्ल प्रवर्धन तकनीक को मानकित कर लिया गया है। संस्थान ने इस क्षेत्र में पहली बार खाद्य मोसो बांस उगाना शुरू किया है। संस्थान सक्रिय रूप से राष्ट्रीय बांस मिशन में शामिल है और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में बांस वृक्षारोपण प्रदर्शन एवं विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। संस्थान ने बांस से अच्छी गुणवत्ता के कोयला में बदलने के लिए एक पोर्टेबल भट्ठे (पेटेंट) को डिज़ाइन किया है।

पारिस्थिकी पुनरुद्धार

सीएसआईआर-आईएचबीटी ने नवीन रोपण प्रौद्योगिकी के उपयोग से एनएचपीसी कुल्लू-मंडी क्षेत्र की दस डंपिंग साइट पर तेजी से बढ़ने वाले पौधों का लगाकर फिर से हरियाली ला दी।

स्‍ट्रे‍टेजिक कार्य

आईएचबीटी ने प्रजाति विशेष की वास्तविकता को कवर करते हुए हिमाचल प्रदेश की वनस्पतियों के वितरण, पारिस्थितिकी और नृवानस्पातिक पहलुओं पर एक डेटाबेस विकसित किया है। सर्वेक्षण के दौरान एकत्र पादप नमूनों को संस्थान में संरक्षित किया गया है, जो न्यूयॉर्क में बॉटनिकल गार्डन में (NYBG) की वनस्पति संग्रहालय में "इन्डेंक्‍स हरबेरियम “Index Herbarium” में सूचीबद्ध है । यह हिमाचल प्रदेश राज्य में एकमात्र वनस्पति संग्रहालय है और इसे संक्षिप्त "पीएलपी" नाम से पहचान दी गई है। संस्थान ने हिमाचल प्रदेश के फ्लोरा के लिए चार नए रिकॉर्ड इसमें जोड़े हैं। इसके अतिरिक्त संस्थान ने सर्वेक्षण और स्थानीय लोगों के साथ बातचीत के आधार पर औषधीय और व्यावसायिक महत्व के कई अल्पज्ञात पौधों की प्रजातियों की पहचान की है। हिमाचल प्रदेश के समस्त कांगड़ा जिले, कुल्लू जिले के सोलंग नाला और किन्नौर जिले में भाभा घाटी भूमि आच्छादन और भूमि उपयोग के वर्गीकरण मैपिंग को भी पूरा किया गया है। हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी में शीत मरुस्थलीय क्षेत्र के सेब के बगीचे IRS 1D LISS III उपग्रह छवि का उपयोग करके मानचित्रिकरण किया गया। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, हमीरपुर और ऊना जिलों में बांसबहुल क्षेत्रों के उपग्रह मानचित्र और भूमि सत्यापन डेटा से 6040 एकड़ क्षेत्र में डेंड्रोकेलामस  स्टीक्टेरस, डी. हेमिलटोनाई, बी. न्यूपटेंस, बैंबूसा एरुंडिसिया, Bambusa arundinacea, Sinarundinaria falcata और Thamnocalamus spathiflora का पता लगा। चंबा जिले में उप अल्पाइन और अल्पाइन क्षेत्र में पोडोफिलम हैक्सेकड्रम अत्याधिक मात्रा में  प्राकृतिक आवासों में भी स्थित पाए गए।