चाय

सीएसआईआर-आईएचबीटी कांगड़ा चाय की स्थिति में सुधार करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। संस्थान के चाय बागान में जर्मप्लाज्म संग्रहण में असम, दार्जिलिंग, तमिलनाडु, उत्तराखंड और हिमाचल से एकत्र 200 से अधिक परिग्रहण accessions स्थापित है। संस्थान द्वारा आयोजित किए गए नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रदर्शनों से तैयार चाय की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद की है और क्षेत्र के बहुत से चाय उत्‍पादकों के हितों को सजीव किया। चाय को लोकप्रिय बनाने के लिए हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में गैर परंपरागत क्षेत्रों में प्रदर्शन प्लाट स्थापित किए गए हैं। संस्थान ने अपनी विशेषज्ञता और पौधशाला स्थापित करके के लिए रोपण सामग्री की आपूर्ति के साथ उत्तराखंड में चाय उद्योग स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परिणामस्‍वरूप, उत्तराखंड  में अब 200 हेक्टेयर क्षेत्र में चाय बागान हैं और एक सफल चाय नीति है। उच्च उपज प्राप्‍त करने के लिए स्थान विशेष के अनुकूल, बेहतर गुणवत्ता और ब्लिस्‍टर रोधी किस्मों को विकसित करने के लिए प्रजनन कार्यक्रम शुरू किया गया है। देश में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध चाय क्लोन के लिए, रूपात्मक जैव रासायनिक और आणविक लक्षण को समाहित करते हुए एक चाय वर्णनकर्ता डेटाबेस (tea descriptor database) को विकसित किया गया है। संस्‍थान ने  निर्मित चाय की गुणवत्ता पैरामीटर के सुधार के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकसित की है। संस्थान द्वारा एकत्रित तकनीकी जानकारी कांगड़ा चाय के जीआई (भौगोलिक संकेतन) प्राप्‍त करने में सहायक रही। कांगड़ा परम्‍परागत काली चाय में स्वाद मार्कर यौगिक को समझना के लिए स्वाद प्रोफ़ाइल के रहस्‍य को जानने के लिए महत्वपूर्ण है और जीसी विश्लेषण से उत्तराखंड और दक्षिण भारत की चाय के गुणात्मक अंतर का पता चला। कांगड़ा परम्‍परागत चाय का प्रमुख सुगंध यौगिक (2,5 dimethly pyrazine and ethyl pyrazine) दूसरे क्षेत्रों की चाय में नहीं पाए गए। बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए, चाय आधारित पेय (आरटीडी), टी-वाइन आदि को विकसित किया गया है। इसके अतिरिक्‍त केटेकिन से थियाफ्लेविन के रूपांतरण  के लिए प्रौद्योगिकी को मानकीकृत किया गया है।

संस्थान ने व्यापक कीट प्रबंधन के लिए एक विधि विकसित की है और इसे क्षेत्र के चाय उत्‍पादकों को अपनाने के लिए सलाह दी है । भारत में आमतौर प्रयोग किए जाने वाले 27 कीटनाशकों के बहुकीटनाशक अवशेष विश्‍लेषण के लिए जीसी और एचपीएलसी का उपयोग करते हुए एक नवीन विधि /  प्रोटोकॉल को विकसित किया है।

खाद्य उत्पादन, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य के लिए जनता की आाशाओं के बदलते वैश्विक स्‍वरूप से/ खाद्य उत्पादों में कीटनाशकों के अवशेष और भारी धातु होना चिंता का विषय बना हुआ  है। इसलिए इन विषैले पदार्थ के लिए सरल विश्‍लेषणात्मक तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है। चाय उत्पादों में ऑरगेनोफॉसफेट organophosphate और ऑरगेनोकलोरीन organochlorines के लिए विश्‍लेषणात्मक प्रोटोकॉल पहले विकसित किया गए हैं और प्रचलित विश्‍लेषणात्मक तकनीकों की दक्षता बढ़ाने के लिए कार्य प्रगति पर है। बहु अवशेष Multiresidue विधि विकसित की गई  है तरल-तरल निष्कर्षण विधि और जीसी का उपयोग कर चाय और हर्बल उत्पादों में ऑरगेनोकलोरीन organochlorines (OCPs), कार्वोफर्न carbofuran और मोनक्रोटोफॉस monochrotophos निर्धारण के लिए ISO 17025 दिशा निर्देशों के अनुरूप मान्य किया गया।

सर्दियों के दौरान, चाय की झाड़ियां  निष्क्रिय और अनुत्पादक होती हैं। संस्थान  तथ्‍यों  को व्‍यवस्थित करने में सहायक आणविक घटित को समझने के लिए प्रयास कर रहा है। इस संबंध कोशिका चक्र, प्रकाश संश्‍लेषण  और चेपरोनिक chaperonic गतिविधि से संबंधित प्रमुख जीन की पहचान की है और सक्रिय विकास की अवधि की तुलना में शीत प्रसुप्‍तावस्‍था के दौरान पृथक/ विभिन्न रूप में विनियमित किया जाना पाया गया। विकास के विभिन्‍न चरणों और मौसमी बदलाव के दौरान कैफीन चयापचय के विनियमन का विश्‍लेषण करने के लिए एक अध्ययन भी किया गया है। संस्थान ने पहली बार केटेकिन जैवसंश्‍लेषण के साथ संबन्धित सभी फुल लेंथ जीन को सफलतापूर्वक क्लोन किया है।